भाटी राजपूत अपने आप को भगवान कृष्ण का वंशज मानते है। वह भगवान विष्णु के अवतार थे । क्यूंकि श्री कृष्णा चंद्रवंशी थे इसलिए भाटी राजपूत भी खुद को चंद्रवंशी कहते है। ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण का जन्म 5252 साल पहले मथुरा जेल में रोहिणी नक्षत्र में श्रावण मास की अष्टमी (बुधवार) को 00.00 बजे हुआ था। उनकी जन्म तिथि 18 जुलाई 3228 ईसा पूर्व के रूप में आंकी गई है।
श्री कृष्ण देवकी और वासुदेव के पुत्र थे। चूँकि उनके माता-पिता जेल में थे, इसलिए उन्हें मथुरा के नंदग्राम / गोकुल में यशोदा और नंदा ने पाला था। उनके बड़े भाई बलराम रोहिणी और वासुदेव के पुत्र थे। उनकी एक बहन भी थी जिसका नाम सुभद्रा था। उनकी पत्नी रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, कालिंदी, मित्रविंदा, नागनजिती, भद्रा और लक्ष्मण थीं
उनका जीवन सरल नहीं था ।वह सांवले रंग के थे और जीवन भर उनका कभी नाम नहीं रक्खा गया। नाम नहीं होने के बावजूद भी उन्हें एक हजार नामों से जाना जाता है। इसी कारण से उन्हें सहस्रनामन भी कहा जाता है। गोकुल के पूरे गाँव ने उनकी सांवली त्वचा के कारण उन्हें कान्हा कहना शुरू कर दिया। काला, छोटा और दत्तक होने के कारण, उनका उपहास भी किया जाता था। उनका बचपन खतरनाक परिस्थितियों से भरा था। श्री कृष्ण गोकुल से सोलह वर्ष की आयु में वृंदावन चले गए।
श्री कृष्ण ने उज्जैन में सांदीपनी ऋषि के आश्रम में अपनी शिक्षा पूरी की। आश्रम में रहते हुए उन्हें अपने गुरु जी के बेटे पुन्नदत्त को छुड़ाने के लिए अफ्रिका से समुद्री लुटेरों से लड़ना पड़ा जिन्हें गुजरात की बंदरगाह प्रभास के पास से अपहरण कर लिया गया था। उनकी शिक्षा के बाद, उन्हें वर्णावत में अपने चचेरे भाई के साथ हुई दुर्घटना के बारे में पता चला। वह उनके बचाव में आये और बाद में अपने चचेरे भाइयों की शादी द्रौपदी से सम्पन कराई । तत्पश्चात, उन्होंने अपने चचेरे भाइयों को इंद्रप्रस्थ में अपना राज्य स्थापित करने में सहायता की और उनके निर्वासन और महाभारत युद्ध के दौरान अपने चचेरे भाइयों के साथ द्रढ़ता से खड़े रहे।
महाभारत युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ा गया था। उस समय श्री कृष्ण 89 वर्ष के थे। यह युद्ध मृगशिरा शुक्ल एकादशी पर ईसा पूर्व 3139 तदनुसार 8 दिसंबर 3139 ईसा पूर्व को शुरू हुआ था और 25 दिसंबर 3139 को समाप्त हुआ। युद्ध के दौरान, 21 दिसंबर 3139 ईसा पूर्व 3.00 से 5.00 बजे के बीच सूर्य ग्रहण था। इस ग्रहण के दौरान ही जयद्रथ मारा गया। भीष्म पितामह का निधन 2 फरवरी 3138 ईसा पूर्व में हुआ था। यह उत्तरायण की पहली एकादशी थी।
श्री कृष्ण ने अपने जीवन में केवल चार व्यक्तियों को मारा था उनके नाम थे १ चारूना पहलवान, २ उनके मामा कंस ३ शिशुपाल और ४ दंतवक्र। एक भी क्षण ऐसा नहीं था जब वह जीवन में शांति से रहे हो। अपने अस्तित्व के हर मोड़ पर उनके पास चुनौतियाँ ही चुनौतियाँ थीं। उन्होंने अपने सामने अपनी नगरी द्वारका को पानी में डूबते देखा देखा। परन्तु श्री कृष्णा ने सभी चुनौतियों का सामना पूरी जिम्मेदारी की भावना के साथ किया और फिर भी अनासक्त रहे। वह एकमात्र व्यक्ति थे जो अतीत और भविष्य को जानता थे फिर भी हमेशा वर्तमान में रहते थे।
श्री कृष्ण को पास के जंगल में जारा नामक एक शिकारी ने १२ फरवरी ३१०२ ईसा पूर्व को महाभारत के ३६ साल बाद, १२५ वर्ष , ८ महीने और ७ दिन की आयु में मार डाला।